मान लीजिए कि आपको लगता है कि भविष्य में सोने की कीमत बढ़ने वाली है, और आप सोने के लिए futures contract खरीद लेते है। यह कॉन्ट्रैक्ट आपको भविष्य में एक निश्चित कीमत पर सोना खरीदने का अधिकार देगा। यदि सोने की कीमत उस तारीख तक बढ़ती है, तो आप लाभ होगा लेकिन अगर सोने की कीमत गिरती है तो आपको नुकसान भी हो सकता है।
आइए विस्तार से समझते हैं। मान लें कि सोने की मौजूदा कीमत १०० रूपए प्रति ग्राम है, और आप १०० ग्राम सोने के लिए भविष्य में ३ महीने की डिलीवरी के साथ futures contract खरीदते है।
अब डिलीवरी तक सोने की कीमत ११० रुपये प्रति ग्राम तक बढ़ जाती है, तो आप अपना futures contract लाभ में बेच सकते है जिसके परिणामस्वरूप आपको पूरे contract के लिए १० रुपये प्रति ग्राम का लाभ होता है। लेकिन, अगर डिलीवरी तक सोने की कीमत ९० रुपये प्रति ग्राम तक गिर जाती है, तो आपको को नुकसान होगा।
यह केवल एक उदाहरण है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग कैसे काम करती है।
डेरिवेटिव क्या होता है?

डेरिवेटिव एक ऐसे चीज है जो किसी और चीज से आयी हो। डेरिवेटिव जिस चीज पे आधारित होता है उसको underlying asset कहते है और डेरिवेटिव की कीमत उसके underlying asset पर डिपेंड करती है। उदहारण के लिए, हम जानते है की दही हमें दूध से मिलता है। इस मामले में दही यहाँ पे दूध का डेरीवेटिव है और दूध यहाँ पर दही का underlying asset है। जैसे दूध की कीमत में बढ़ोतरी या कमी होती है, उसका प्रभाव दही की कीमत पे होता है।
इसी तरह स्टॉक मार्किट में फाइनेंसियल डेरिवेटिव होते है, जिनकी underlying asset स्टॉक्स, करेंसी, कमोडिटी और इंडेक्स होते है। underlying asset के उतार-चढ़ाव से प्रॉफिट कामना यही डेरिवेटिव ट्रेडिंग का प्रमुख लाभ है।
डेरिवेटिव के प्रकार
कई प्रकार के डेरिवेटिव हैं, जैसे की,
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स (Futures contracts):
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स भविष्य की तारीख पर एक निर्धारित मूल्य पर underlying assets की एक विशिष्ट राशि को खरीदने या बेचने का एक समझौता है।
ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स (Options contracts):
ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स खरीदार को एक निश्चित तिथि पर या उससे पहले एक निर्धारित मूल्य पर underlying assets खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन कमिटमेंट नहीं।
स्वैप (Swaps):
स्वैप एक एग्रीमेंट है जिसमे एक प्रकार के कैश फ्लो को दूसरे के एक्सचेंज होता है। उदाहरण के लिए, एक पक्ष दूसरे पक्ष से वेरिएबल इंटरेस्ट के बदले में एक फिक्स्ड इंटरेस्ट दर का पेमेंट करने के लिए सहमत हो सकता है।
फॉरवर्ड (Forwards):
फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के समान है, लेकिन यह आमतौर पर दो पक्षों के बीच एक प्राइवेट एग्रीमेंट है।
डेरिवेटिव ट्रेडिंग जोखिम भरा भी हो सकता है, क्योंकि डेरिवेटिव का मूल्य अस्थिर हो सकता है और उनकी कीमतें तेजी से बदलाव होता हैं। डेरिवेटिव ट्रेडिंग में शामिल होने से पहले ट्रेडर्स के लिए जोखिमों को समझना और स्टॉक मार्किट मि पूरी जानकारी होना महत्वपूर्ण है।
